मन शीतल कर हे शिव शंकर 2
गंगा जल तोला चढ़ाहूं 2
जानत हंव तीही गंगाधर
फेर भाव के गंगा बोहाहूं
फेर भगती के गंगा बोहाहूं
तैं बैरागी महा तियागी
तैं बैरागी महा तियागी
तोर शरण म मुक्ति पाहूं
मन शीतल कर हे शिव शंकर
गंगा जल तोला चढ़ाहूं 2
मन के मत म रेंगेव मन भर,
मन हा मताईस जिनगी भर
भटकत भटकत तोरे शरण म,
पहूंचेंव भोला शिव शंकर
हो मन हो जाथे जईसे शीतल,
बर के छांव म राही के
मुक्ति दे प्रभु भव बंधना ले,
बंधना टोर आवा जाही के
ओम नम: शिवाय जपो मैं
ओम नम: शिवाय जपो मैं
चरण के धूल बन जाहूं
मन शीतल कर हे शिव शंकर
गंगा जल तोला चढ़ाहूं 2
भस्म रमा के तन म तैं हर,
मुक्ति के भेद बताए हस
जनम मरम दुनो हे पबरित,
जग ला तीही सिखाए हस
हो भागीरथी के तप ला बाबा
अपन जटा के दे आधार
कांतिकार्तिक मुक्ति खोजै
कईसे होही भवसागर पार
तैं सागर मैं भटकत नंदिया
तैं सागर मैं भटकत नंदिया
होके विलिन हरषाहूं
मन शीतल कर हे शिव शंकर
गंगा जल तोला चढ़ाहूं 2
जानत हंव तीही गंगाधर
फेर भाव के गंगा बोहाहूं
फेर भगती के गंगा बोहाहूं
तैं बैरागी महा तियागी
तैं बैरागी महा तियागी
तोर शरण म मुक्ति पाहूं
मन शीतल कर हे शिव शंकर
गंगा जल तोला चढ़ाहूं
✍ लेखक: कांतिकार्तिक यादव
🎤 प्रस्तुतकर्ता: KOK Creation
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